शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

भक्त शबरी और प्रभु राम

 भक्त भील शबरी और प्रभु श्रीराम।


यह त्रेता युग की बात है। विश्व में नरभक्षी आसुरी आतंक बढ़ गया था। इस समय विश्व को बचानेवाली किसी ईश्वरीय शक्ति की आवश्यकता थी। इस आंतक से मानव को मुक्ति दिलाने के लिए अयोध्या में प्रभु श्रीराम का अवतरण हुआ।  


उनके मां का नाम था कौसल्या और पिता का नाम था दशरथ। वे अयोध्या के सम्राट थे। उनकी और भी 2 पत्नियां थी- कैकयी और सुमित्रा। सुमित्रा से हुए लक्ष्मण और कैकई से हुए भरत- शत्रुघ्न। चारों भाइयों में अपार प्रेम था। राम जी सब से बड़े थे।


राम जी चारों भाईयों के साथ वन में स्थित वनवासी गुरुकुल से गुरु वशिष्ठ जी के सान्निध्य में अध्ययन कर अयोध्या लौट आए। उनका ऋषि विश्वामित्र की कृपा से मिथिला राज्य के राजा जनक की पुत्री सीता जी से विवाह हुआ।


राजा दशरथ राम जी को अयोध्या का राजा बनाना चाहते थे। उनके राज्य अभिषेक की तयारीयाँ होने लगी। नगर सझाया जाने लगा। लेकिन एक विघ्न उपस्थित हो गया। कैकयी अपने पुत्र भरत को राजा बनाना चाहती थी। उन्होंने पुराने 2 वचन के बदले राजा से भरत को राज्य और राम को वनवास मांगा। यह बात राम जी को मालूम पड़ी। राम किंचित भी दुःखी नही हुए। वे प्रसन्नता पूर्वक 14 वर्ष के लिए वनवासी जीवन स्वीकार कर चलने को तत्पर हो गए। सीता जी का राम जी के साथ अत्यधिक प्रेम था। वह राम जी के बिना नही रह सकती थी। वह भी वनवासी वेश में राम जी के साथ जाने को तैयार हो गई। लक्ष्मण का भी भाई राम के साथ प्रेम था, वे भी राम को अकेले वन भेजना नही चाहते थे। वे भी राम जी के साथ हो लिए।


तिन्हों वनवासी वेश में वनवासियों के मध्य धनुष बाण धारण कर वन में कन्द, मूल, फल को खाकर वनवासी जीवन व्यतीत करने लगे। 


एक समय राम जी गोदावरी के तट पर दंडकवन पंचवटी में रह रहे थे। उनका वनवास का समय पूरा होने को था। वनवास के अंतिम समय में एक विघ्न उपस्थित हो गया। लंका के राजा अत्याचारी रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। सीता जी पतिव्रता थी। वह राम जी को छोड़कर किसी भी पराये पुरुष को कभी देखती नही थी। वह बहुत दुःखी हो गई।


सीता जी को कुटिया में न पाकर राम जी भी बहुत दुखी हुए। वे सीता जी को खोजते फिर रहे थे लेकिन उनका उन्हें कुछ भी पता नही चला। 


राम जी सीता को ढूंढते ढूंढते  सिद्ध ऋषि मतंग के आश्रम में गए। आश्रम में शबरी राह रही थी। मतंग ऋषि ने शरीर छोड़ दिया था। शबरी उनकी शिष्या थी। वह परम धार्मिक, गुरु भक्त साधिका थी। 


मतंग ऋषि ने अपना शरीर छोड़ते समय शबरी को आदेश दिया था की- इस धरा पर भगवान का अवतार हो चुका है। वे प्रभु श्रीराम तुम्हारे आश्रम पर तुम्हें मिलने आएंगे, तुम्हारी साधना पूर्ण होगी। प्रभु राम के दर्शन होने तक तुम्हे इस शरीर में रहना होगा। इतना कहकर मतंग ऋषि ने अपना शरीर छोड़ दिया। 


तभी से भक्त शबरी राम जी की व्याकुलता पूर्वक राह देख रही थी। वह एक महान साधिका, गुरु की आज्ञाकारी तथा राम भक्त थी। उन्होंने गुरु मतंग ऋषि की निष्काम भाव से सेवा की थी। वह साधन आरूढ़ थी। 


मतंग ऋषि भी प्रकृति का महान आदि धर्म सनातन के सिद्ध पुरुष थे। सकल सिद्धियां उनके पास थी लेकिन वे कभी उनका उपयोग नही करते थे। 


गुरुभक्त शबरी सांवली रंग की, बहुत भोली और पवित्रमना थी। उनमे भी बहुत सी सिद्धियां थी लेकिन वह उसका कभी प्रदर्शन नही करती थी। उनके माता पिता भी ऋषि मुनियों के सेवक थे। सेवा और भक्ति के संस्कार उनको उनके परिवार से मिले थे। प्रेम तो उनके हृदय का अमर भाव था।


वह आजीवन अपने गुरु की सेवा का व्रत लेकर गुरु भक्ति में डूब चुकी थी। गुरु ही उनके जीवन की पूजा पाठ, साधना, सिद्धि और मोक्ष सबकुछ थे। 


भक्त शबरी प्रभु के चिन्तन में डूब गई। प्रभु के विरह में कभी रोती, प्रभु के संयोग का अनुभव कर कभी हसती, कभी प्रेम में उन्मत्त होकर गाती, नृत्य करती।


प्रतिदिन वह प्रभु का रास्ता देखती। उन्हें नही मालूम था प्रभु कब और किस दिशा से आएंगे। वह हर दिन सभी दिशाओं के रास्ते स्वच्छ करती। क्या पता प्रभु का कब और किस दिशा से आगमन हो। 


वह प्रतिदिन प्रभु के लिए वन से फल, कंद, मूल आदि ले आकर प्रतीक्षा करती थी। उनको जब कोई बहुत मीठा फल मिल जाता तो वह उसको खाती नही थी, उसको वह प्रभु के लिए रख देती थी। 


उनको मालूम हो गया था इस वन में प्रभु का आगमन हो गया है। वे कभी भी उनकी कुटिया में आ सकते है। वह उनके स्वागत में बहुत आतुर हो रही थी। 


उन्होंने अनेको प्रकार के कंद, मूल, फल प्रभु के लिए संग्रहित कर रखे थे। वह समय बेर के फल का था। बेर के फल भी उन्होंने संग्रहित कर रखे थे।


भगवान राम जी का आगमन हो गया। लखन तथा अनेको ऋषि मुनि भी प्रभु के साथ थे। आज शबरी धन्य हो गयी। उन्होंने कुटिया के द्वार पर प्रभु का स्वागत किया। जल से उनके पैर धोए, हाथ धोए। अपने पल्लू से उनके हाथ और पैर पोछे। शबरी प्रभु को कुटिया के अंदर ले आयी। उन्होंने मतंग ऋषिके चरण पादुका के दर्शन कराए। प्रभु शबरी के आसन पर बैठ गए। 


शबरी ने प्रभु को कंद,मूल,फल खिलाये। उन में बेर भी थे। लेकिन बेर के फल जूठे थे। मीठा देखने के लिए वे शबरी के द्वारा चखे हुये थे। 


प्रभु राम भक्त शबरी के जूठे बेर प्रेम से खाने लगे। शबरी धन्य हो गयी। गुरु का संकल्प भी पूरा हो गया। प्रभु ने उन्हें नवधा भक्ति का उपदेश किया। शबरी अब पूर्णकाम हो चुकी थी, उन्हें प्रभु की अविरल भक्ति प्राप्त हो गयी। 


उन्होंने प्रभु से प्रार्थना की-प्रभु! आप पम्पा सरोवर जाइए। वहां पर आप को हनुमान और सुग्रीव मिलेंगे। उनसे आप की दोस्ती होगी। वे आप का सहयोग करेंगे। आप की रावण पर विजय होगी और आप सीता को लेकर अयोध्या चले जाएंगे। मानो भक्त शबरी भगवान को मार्ग दिखा रही हो, उनका भविष्य बता रही हो।


प्रभु राम शबरी से विदा लेकर पम्पा सरोवर चले गए। वहां पर जनजाती समूह के राजा सुग्रीव और हनुमान जी मिले।


इधर शबरी प्रभु के भजन में डूब गयी। अब उनको अन्य कोई प्रयोजन शेष नही रहा। उन्होंने निरन्तर नवधा भक्ति द्वारा अपने को प्रभु के मार्ग पर समर्पित कर दिया और वह प्रभु को प्राप्त हो गयी।


जय राम की, जय भक्त शबरी मैय्या की।

स्वामी प्रणवानंद सरस्वती- वृन्दावन।

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