सोमवार, 19 नवंबर 2012

ज्ञान से आचरण बड़ा

           राज दरबार में एक राज पुरोहित आते थे। वे बहुत बड़े ज्ञानी थे। राजा उनका बहुत सम्मान करते रहे। जब भी राज पुरोहित आ जाते राजा उठकर खड़े हो जाया करते थे। अक्सर दरबार में चर्चा होती रहती की ज्ञान बड़ा की आचरण? सभी लोग ज्ञान को ही महत्त्व देते थे। एक दिन राज पुरोहित ने एक प्रयोग करना चाहा। वे एक दिन राजा के कोषागार गए। खजांची ने उनका स्वागत  किया। राजपुरोहित ने खजांची की नजर बचाकर 2 मोती उठा लिए।  खजांची ने भी उन्हें देख लिए। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। दुसरे तीसरे दिन भी वैसा ही हुआ। राज पुरोहित जी आते और 2 मोती चुरा के चले जाते। खजांची ने राजा को सारी बाते बता दी। राजा के मन में पुरोहित के प्रति अश्रद्धा हो गई। वे अब पुरोहित के दरबार में आनेपर भी नहीं उठते थे। एक दिन राजा ने पुरोहित कहा- आप चोरी क्यों करते हो? ऐसा करेंगे तो आप यहाँ नहीं रह पाएंगे। राजपुरोहित जी समझ गए। परिक्षण हो गया है।  राज पुरोहित जी ने कहा- राजन! मैं चोरी इसलिए करता था की मैं जानना चाहता था की ज्ञान बड़ा की आचरण? मैंने चोरी की, मेरे ज्ञान में कोई अंतर नहीं आया। परन्तु मेरे आचरण में अंतर आया इसीलिए आप की मेरे उपर अश्रद्धा  हो गई। बात सिद्ध हो गई की मेरी प्रतिष्ठा का कारण आचरण है ज्ञान नहीं। आचरण से ही आदमी बड़ा होता है।

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

दलित कुलोत्पन्न भगवान जगद्गुरु देवऋषि नारद


        भगवान के २४ अवतार हुए है.वे सभी मानव जाती के उद्धार के लिए ही हुए है.भगवद दृष्टि में कोई भेद नही होता है .मानवीय स्वार्थी मन उसको अपने स्वार्थ के लिए दिखाने की कोशिस करता है. बहुत सुखद बात है, हिन्दू धर्म के निर्माण में शुद्र कुलोत्पन्न महा पुरुषों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. परन्तु कुच्छ स्वार्थी लोंगो ने इस पवित्र एवं गौरवपूर्ण तथ्य को छिपाकर शुद्र कुल एवं उस के गौरव बोध को अपहृत करने की पूरी कोशिस की है. और वे उस में सफल भी होते दिख रहे है.महान ग्रन्थ महाभारत, १८ पुराण एवं हिन्दू धर्म ग्रन्थ भगवद गीता जी के लेखक हिन्दू धर्म के शिल्पी महर्षि वेद व्यास जी तथा जगद्गुरु देवऋषि नारद जी तथा रामायण के आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी आदि पवित्र शुद्र कुलोत्पन्न भगवदीय महापुरुष है. परन्तु हमने इस पवित्र गौरव बोध को सामान्य जन तक पहुँचने का प्रयत्न नही किया और नही हम इस गौरव को पहचान कर महान बननेकी ओर अग्रस्सर हुए.प्रकाशमय पूर्ण चन्द्र को जन्मना वर्णवाद के राहु ने ग्रसित कर लिया.बाद में हम यह भी भूल गए की ये महा पुरुष हमारे ही शुद्र कुल में उत्पन्न हुए थे और हमारा भी कुल वैसा ही पवित्र है जैसे अन्य कुल.
        जब तक ब्राह्मन जाती त्याग, दया,सत्य, संयम आदि दिव्य गुणों से संपन्न थी..जाती की अपेक्षा गुणों को जादा महत्व दिया जाता था तब यह देश जगद्गुरु भारत था, सोनेकी चिड़िया कहलाता था. परन्तु कालांतर में स्वार्थ के विष ने सर्वजन के बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के महा मंत्र को भुलाकर महान बनने के गणित को बिगाड़ दिया.
      सौभाग्य से भगवान के २४ अवतारों में तीसरे और १७ वे पवित्र देव ऋषि नारद जी और महर्षि वेदव्यास जी दोनों अवतार दलित कुल में हुए है.स्वयं नारद जी ने अपने आत्म चरित्र में कहा है-.अहम् पुरातित भवे मुने दास्यास्तु कस्याश्चन वेद वादिनाम .....मै एक घरो में काम करनेवाली गरीब पवित्र दासी का पुत्र था.बाल्यावस्था में ब्राह्मणों ने मुझे संतो की सेवा में नियुक्त किया था..यहि नारद जी भगवन के १७ वें अवतार हुए है. देवर्षि नारद जी जैसा कोई दूसरा ऋषि हिन्दू धर्म में नही हुआ है. उनका देवता, मनुष एवं असुर भी सम्मान करते थे. वे एक गरीब शुद्र कुल मे पैदा होते हुए भी महान तप त्याग के द्वारा सम्पूर्ण विश्व के महान आदर्श बने.भगवान ने शुद्र कुल में नारद के रूप में अवतार ग्रहण कर दिखा दिया की भगवान के लिए कोई वर्ण या जाती भेद नही है. कोई भी व्यक्ति किसी भी जाती,वर्ण में पैदा होकर अपने कर्म से, अपने पवित्र पुरुषार्थ से महान बन सकता है. उन्होंने दलितों,स्त्रियों आदि सभी का उद्धार करने के लिए बहुत प्रयत्न किये है.उन्होंने सनकादी ऋषियों से प्रार्थना की थी की .भक्तिग्यांविरागानाम सुख.......स्थापनं सर्व वर्नेसु मै भक्ति,ज्ञान आदी को चारो वर्णों में फैलाना चाहता हूँ.
       १७ वे अवतार महर्षि वेदव्यास जी दलित जाती की महान मनीषी मत्स्य गंधा और महर्षि पराशर के सुपुत्र थे. उन्होंने तो स्पष्ट रूप से घोषणा की थी की स्त्रिशुद्र द्विज्बंधुनान श्रेय एव भावेदिह ..स्त्रि शुद्र आदि का विकास कैसे हो? उन्होंने शुद्रो,स्त्रियो ,वंचितों आदि के उद्धार के लिए ही १८ पुराण, महाभारत की रचना की और एक दलित रोम्हर्शन को महाभारत और १८ पुरानो का आचार्य बना दिया.इतिहास पुराणानां पिता में रोमहर्षण  ..पहले प्रणवात्मक एक ही वेद था. फिर उन्होंने ही वेद के चार भाग किये और उनके चार नाम रखा दिए. इसीलिए वे महर्षि वेद व्यास कहलाये. महर्षि वेदव्यास आधुनिक हिन्दू धर्म के शिल्पी है.उन्होंने ही हमें वर्ण वाद के मकडजाल से निकाल कर भगवद तत्त्व में प्रतिष्ठित कर दिया .आज हम जो भी कुछ बचे हुए है वह महर्षि वेदव्यासजी के ही कारण है.आज हम लोग महर्षि वेदव्यास के ही शुभ संकल्प को आगे बडा रहे है.
       अब वर्त्तमान का समय शुभ है और बहुसंख्यक मनीषी भी दलितों के उद्धार को मन से स्वीकार कर उन को आगे बढ़ने में मदत कर रहे है.अब हमें अतीत को कोसने की अपेक्षा अतीत से प्रेरणा लेकर वर्त्तमान के परिवर्तन का स्वागत करना शिखना होगा.. यह समय अतीत की बातों को लेकार संघर्ष खड़ा करने की मुर्खता का नही है अपितु सुविधा का सम्यक उपयोग कर आगे बढ़ने का है.आपसी संघर्ष हमें गुलामी के कल में ले जा सकता है. 
      शास्त्र के गहन चिंतन करने पर अवगत होता है की ब्राहण जाती का भी हमारे बहुत बड़ा उपकार है.. प्राचीन समय में वे त्याग, अपरिग्रह,संयम आदि का संकल्प लेकर जीवन जीना और चारों वर्णों  के उत्थान के लिए काम करते रहना ही ब्राह्मन का काम था.. उनके हिस्से में केवल सम्मान था,सुविधा और समृद्धि ब्राह्मनेतर लोगो के हिस्से में थी.भिक्षा मांगकर खाने वाली बात केवल ब्राह्मन के हिस्से में थी.उन में परिग्रह के लिए कोई स्थान नही था.कुछ सौ वर्ष पहले बाहरी आक्रमण के फलस्वरूप हमारी व्यवस्था छिन्नभिन्न हो गई और आत्मरक्षा, संस्कृति रक्षन एवं धर्मं रक्षा के मौलिक भाव ने हमें स्वार्थी एवं संकुचित बना दिया.उसी का दुष्परिणाम आज हिन्दू भोग रहे है. परन्तु आज जो सुधार की भाईचारे के साथ शांति पूर्ण प्रक्रिया चल रही है ऐसी ही चलती रहे, इस को किसी की नजर न लगे, कुछ शिरफिरे सनकी, स्वार्थी पागल लोग हिन्दू एकता को तोड़ने में सफल नही हो पाए तो कुछ दशक बाद ही हम संतोष , सम्मान, सुविद्धा एवं समत्वपूर्ण हिन्दू समाज का निर्माण होता हुआ देख लेंगे.

दुनिया में कोई पुस्तक आसमानी नही

दुनिया में कोई पुस्तक आसमानी नही.मुस्लिम विद्वान्  एवं भारत के इस्लामीकरण के प्रवक्ता जाकीर नायक कहते है कुरान आसमानी पुस्तक है और इस में गलत कुछा भी नही है..परन्तु आज के विचार प्रधान समाज में यह बात बड़ी अटपटी मालूम पड़ती है. क्योंकि दुनिया की कोई भी पुस्तक आसमानी नही है.ये सभी पुस्तके इस धरती के लोंगो की उपज है.और इन सभी पुस्तकों में कालांतर में बहुत सी बाते अपने अपने हिसाब से जोड़ी गई है.इसीलिए इसमे मानवीय भूले और कमियां दिखाई देती है.कुरान साहब भी पहले तो सुनी सुनाइ बातो पर आधारित थी. पहले पुस्तके तो थी नही.श्रुत परंपरा थी. लोग मुहमद साहब की सुनी हुई बहुत सी बाते भुलने भी लगे थे, उन में अपनी बाते भी लोंगो ने जोड़ रखी थी.फिर वर्त्तमान कुरान  साहब मुहमद साहब से शेकडो वर्षो बाद मुस्लिम विद्वानों के द्वारा व्यवस्थित की गई है.फिर भी इन के मूल वक्ता पवित्रात्मा एवं ईश्वरीय शक्ति का अनुभव करनेवाले महा पुरुथे.इन का ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण था इसीलिए इन लोंगो ने इन धर्म ग्रंथों को स्वनिर्मित न कहकर इश्वर निर्मित कहा है.इसको ईश्वर निर्मित कहने के दो कारण मालूम पड़ते है एक तो इन महा पुरुषों में विनम्रता,निरभीमानिता,ईश्वर समर्पण झलकता है और दूसरी बात इस से ग्रन्थ की महता भी बढती है.वेदों के विषय में भी यहि बात कहि गई है.वेद अपौरुषेय है और इस में पुरुष के सहज भ्रम,प्रमाद आदि दोष नही है.लगता है यहि भारतीय विचार जाकिर नायक कुरान के साथ जोड़कर बोल रहे है.लेकिन मुहमद साहब के अनुभव की मूल कुरान क्या थी? और उस में बाद के लोगों ने उन में क्या क्या जोड़ दिया है यह किसी को पता नही...धार्मिक पुस्तकों में जो कमियाँ दिखाई देती है वह बाद के विद्वानों की जोड़ी गई बाते हो सकती है. ऐसे ही वर्त्तमान मनु स्मृति  मूल पुरुष आदि मनु की हो ही नही सकती.जिनके कारण मानव जाती मानव कहलाई,जो सर्व पितरि पुरुष थे वे इतनी कट्टर बाते लिख ही नही सकते थे.वर्त्तमान की मनुस्मृति बाद के लोंगो के द्वारा जोड़ी गई बातों से विकृत है.सदोष है.परन्तु मूल पुरुष और उनकी मूल भावना पवित्र है. यह खोज का विषय है.
अन्य ब्लॉग से साभार:-

भारत में इस्लामी जिहाद-इतिहास के पन्नों से


मुहम्मद बिन कासिम (७१२-७१५)
मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारत के पश्चिमी भागों में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासज्ञ अल क्रूफी द्वारा अरबी के'चच नामा' इतिहास प्रलेख में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद एलियट और डाउसन ने किया था।


सिन्ध में जिहाद
सिन्ध के कुछ किलों को जीत लेने के बाद बिन कासिम ने ईराक के गर्वनर अपने चाचा हज्जाज को लिखा था- 'सिवस्तान और सीसाम के किले पहले ही जीत लिये गये हैं। गैर-मुसलमानों का धर्मान्तरण कर दिया गया है या फिर उनका वध कर दिया गया है। मूर्ति वाले मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं, बना दी गई हैं।
(चच नामा अल कुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १ पृष्ठ १६४)
जब बिन कासिम ने सिन्ध विजय की, वह जहाँ भी गया कैदियों को अपने साथ ले गया और बहुत से कैदियों को, विशेषकर महिला कैदियों को, उसने अपने देश भेज दिया। राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ- परिमल देवी और सूरज देवी-जिन्हें खलीफा के हरम को सम्पन्न करने के लिए हज्जाज को भेजा गया था वे हिन्दू महिलाओं के उस समूह का भाग थीं, जो युद्ध के लूट के माल के पाँचवे भाग के रूप में इस्लामी शाही खजाने के भाग के रूप् में भेजा गया था। चच नामा का विवरण इस प्रकार है- हज्जाज की बिन कासिम को स्थाई आदेश थे कि हिन्दुओं के प्रति कोई कृपा नहीं की जाए, उनकी गर्दनें काट दी जाएँ और महिलाओं को और बच्चों को कैदी बना लिया जाए'

(उसी पुस्तक में पृष्ठ १७३)
हज्जाज की ये शर्तें और सूचनाएँ कुरान के आदेशों के पालन के लिए पूर्णतः अनुरूप ही थीं। इस विषय में कुरान का आदेश है-'जब कभी तुम्हें मिलें, मूर्ति पूजकों का वध कर दो। उन्हें बन्दी बना (गिरफ्तार कर) लो, घेर लो, रोक लो, घात के हर स्थान पर उनकी प्रतीक्षा करो' (सूरा ९ आयत ५) और 'उनमें से जिस किसी को तुम्हारा हाथ पकड़ ले उन सब को अल्लाह ने तुम्हें लूट के माल के रूप दिया है।'
(सूरा ३३ आयत ५८)
रेवार की विजय के बाद कासिम वहाँ तीन दिन रुका। तब उसने छः हजार आदमियों का वध किया। उनके अनुयायी, आश्रित, महिलायें और बच्चे सभी गिरफ्तार कर लिये गये। जब कैदियों की गिनती की गई तो वे तीस हजार व्यक्ति निकले जिनमें तीस सरदारों की पुत्रियाँ थीं, उन्हें हज्जाज के पास भेज दिया गया।
(वही पुस्तक पृष्ठ १७२-१७३)

कराची का शील भंग, लूट पाट एवम्‌ विनाश

'कासिम की सेनायें जैसे ही देवालयपुर (कराची) के किले में पहुँचीं, उन्होंने कत्लेआम, शील भंग, लूटपाट का मदनोत्सव मनाया। यह सब तीन दिन तक चला। सारा किला एक जेल खाना बन गया जहाँ शरण में आये सभी 'काफिरों' - सैनिकों और नागरिकों - का कत्ल और अंग भंग कर दिया गया। सभी काफिर महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मुस्लिम योद्धाओं के मध्य बाँट दिया गया। मुखय मन्दिर को मस्जिद बना दिया गया और उसी सुर्री पर जहाँ भगवा ध्वज फहराता था, वहाँ इस्लाम का हरा झंडा फहराने लगा। 'काफिरों' की तीस हजार औरतों को बग़दाद भेज दिया गया।'
(अल-बिदौरी की फुतुह-उल-बुल्दनः अनु. एलियट और डाउसन खण्ड १)


ब्राहम्नाबाद में कत्लेआम और लूट

'मुहम्मद बिन कासिम ने सभी काफिर सैनिकों का वध कर दिया और उनके अनुयायियों और आश्रितों को बन्दी बना लिया। सभी बन्दियों को दास बना दिया और प्रत्येक के मूल्य तय कर दिये गये। एक लाख से भी अधिक 'काफिरों' को दास बनाया गया।'
(चचनामा अलकुफी : एलियट और डाउसन खण्ड १ पृष्ठ १७९)


सुबुक्तगीन (९७७-९९७)
'
काफिर द्वारा इस्लाम अस्वीकार देने, और अपवित्रता से पवित्र करने के लिए, जयपाल की राजधानी पर आक्रमण करने के उद्‌देश्य से, सुल्तान ने अपनी नीयत की तलवार तेज की। अमीर लम्घन नामक शहर, जो अपनी महान्‌ शक्ति और भरपूर दौलत के लिए विखयात था, की ओर अग्रसर हुआ। उसने उसे जीत लिया, और निकट के स्थानों, जिनमें काफ़िर बसते थे, में आग लगी दी, मूर्तिधारी मन्दिरों को ध्वंस कर दिया और उनमें इस्लाम स्थापित कर दिया। वह आगे की ओर बढ़ा और उसने दूसरे शहरों को जीता और नींच हिन्दुओं का वध किया; मूर्ति पूजकों का विध्वंस किया और मुसलमानों की महिमा बढ़ाई। समस्त सीमाओं का उल्लंघन कर हिन्दुओं को घायल करने और कत्ल करने के बाद लूटी हुई सम्पत्ति के मूल्य को गिनते गिनते उसके हाथ ठण्डे पड़ गये। अपनी बलात विजय को पूरा कर वह लौटा और इस्लाम के लिए प्राप्त विजयों के विवरण की उसने घोषणा की। हर किसी ने विजय के परिणामों के प्रति सहमति दिखाई और आनन्द मनाया और अल्लाह को धन्यवाद दिया।'
(तारीख-ई-यामिनीः महमूद का मंत्री अल-उत्बी अनु. एलियट और डाउसन खण्ड २ पृष्ठ २२, और तारीख-ई-सुबुक्त गीन स्वाजा बैहागी अनु. एलियट और डाउसन खण्ड २)


गज़नी का महमूद (९७७-१०३०)

भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल-उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, 'दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्‌स ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध कराया गया है।'


पुरुद्गापुर (पेशावर) में जिहाद

अल-उत्बी ने लिखा- 'अभी मध्याह भी नहीं हुआ था कि मुसलमानों ने 'अल्लाह के शत्रु', हिन्दुओं के विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप् मेंखा सकें। अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं। यह 'महान' और 'शोभनीय' कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ'
(अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और डाउसन खण्ड पृष्ठ २७)


नन्दना की लूट

अल-उत्बी ने लिखा- 'जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगों को, जिनके पास मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक थे कि इनका मूल्य बहुत घट गया और वे बहुत सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय व्यक्तियों को, अपमानित किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर-मुसलमानों को अपमान देता है।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९)

थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार

अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- 'इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके। यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिह्‌न भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना की
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१)
फरिश्ता के मतानुसार, 'मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ अनेकों दास व दासियाँ लाया था।
(फरिश्ता : एलियट और डाउसन - खण्ड I पृष्ठ २८)

सिरासवा में नर संहार

अल-उत्बी आगे लिखता है- 'सुल्तान ने अपने सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश् दिया। परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये गये और मुसलमानों ने लूट के मालकी तब तक कोई चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, (हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली...बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे।...गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर दिया गया।'
(अल-उत्बी : एलियट और डाउसन - खण्ड ii पृष्ठ ४९-५०)
अल-बरूनी ने लिखा था- 'महमूद ने भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वस कर दिया। इतना आश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानों की चिरकालीन प्राणलेवा, अधिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।'
(अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया, बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०)



सोमनाथ की लूट

'सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया, शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी सम्पत्ति को आधिपत्य में कर लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी। बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया'
(तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१)



मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६)

हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, 'ताज-उल-मासीर', में मुहम्मद गौरी के व्यक्तितव और उसके द्वारा भारत के बलात्‌ विजय का विस्तृत वर्णन किया है।
युद्धों की आवश्यकता और लाभ के वर्णन, जिसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात्‌ उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बाद हसन निज़ामी ने कहा 'कि पन्थ के दायित्वों के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान, अविश्वासियों और बहु देवता पूजकों के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से छांटा था, 'क्योंकि उसने अपने आपको पन्थ के शत्रुओं के मूलोच्छदन एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदयों के रक्त से भारत भूमि को इतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्‌टी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया; मन्दिरों, मूर्तियों व आकृतियों के स्थान पर मस्जिदें बना दी।'
(ताज-उल-मासीर : हसन निजामी, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २०९)


अजमेर पर इस्लाम की बलात्‌ स्थापना

हसन निजामी ने लिखा था- 'इस्लाम की सेना पूरी तरह विजयी हुई और एक लाख हिन्दू तेजी के साथ नरक की अग्नि में चले गये...इस विजय के बाद इस्लाम की सेना आगे अजमेर की ओर चल दी जहाँ हमें लूट में इतना माल व सम्पत्ति मिले कि समुद्र के रहस्यमयी कोषागार और पहाड़ एकाकार हो गये।
'जब तक सुल्तान अजमेर में रहा उसने मन्दिरों का विध्वंस किया और उनके स्थानों पर मस्जिदें बनवाईं।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २१५)

देहली में मन्दिरों का ध्वंस

हसन निजामी ने आगे लिखा-'विजेता ने दिल्ली में प्रवेश किया जो धन सम्पत्ति का केन्द्र है और आशीर्वादों की नींव है। शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों को मन्दिरों और मूर्तियों से तथा मूर्ति पूजकों से रहित वा मुक्त बना दिया यानि कि सभी का पूर्ण विध्वंस कर दिया। एक अल्लाह के पूजकों (मुसलमानों) ने मन्दिरों के स्थानों पर मस्जिदें खड़ी करवा दीं, बनवादीं।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)

वाराणसी का विध्वंस (शीलभंग)

'उस स्थान से आगे शाही सेना बनारस की ओर चली जो भारत की आत्मा है और यहाँ उन्होंने एक हजार मन्दिरों का ध्वंस किया तथा उनकी नीवों के स्थानों पर मस्जिदें बनवा दीं; इस्लामी पंथ के केन्द्र की नींव रखी।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२३)
हिन्दुओं के सामूहिक वध के विषय में हसन निजामी आगे लिखता है, 'तलवार की धार से हिन्दुओं को नर्क की आग में झोंक दिया गया। उनके सिरों से आसमान तक ऊंचे तीन बुर्ज बनाये गये, और उनके शवों को जंगली पशुओं और पक्षियों के भोजन के लिए छोड़ दिया गया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २९८)
इस सम्बन्ध में मिन्हाज़-उज़-सिराज़ ने लिखा था-'दुर्गरक्षकों में से जो बुद्धिमान एवं कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्हें धर्मान्तरण कर मुसलमान बना लिया किन्तु जो अपने पूर्व धर्म पर आरूढ़ रहे, उन्हें वध कर दिया गया।'
(तबाकत-ई-नसीरी-मिन्हाज़, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २२८)


गुजरात में गाज़ी लोग (११९७)
गुज़रात की विजय के विषय में हसन निजामी ने लिखा- 'अधिकांश हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया और लगभग पचास हजार को तलवार द्वारा वध कर नर्क भेज दिया गया, और कटे हुए शव इतने थे कि मैदान और पहाड़ियाँ एकाकार हो गईं। बीस हजार से अधिक हिन्दू, जिनमें अधिकांश महिलायें ही थीं, विजेताओं के हाथ दास बन गये।
(वही पुस्तक पृष्ठ २३०)

देहली का पवित्रीकरण वा इस्लामीकरण

'तब सुल्तान देहली वापिस लौटा उसे हिन्दुओं ने अपनी हार के बाद पुनः जीत लिया था। उसके आगमन के बाद मूर्ति युक्त मन्दिर का कोई अवशेष व नाम न बचा। अविश्वास के अन्धकार के स्थान पर पंथ (इस्लाम) का प्रकाश जगमगाने लगा।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २३८-३९)

कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०)

हसन निजामी ने अपने ऐतिहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन इस्लाम का शीर्ष है और गैर-मुसलमानों का विध्वंसक है...उसने अपने आपको शत्रुओं-हिन्दुओं-के धर्म के मूलोच्छेदन यानी कि पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया...उसने मूर्ति पूजकों के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मन्दिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवादी थीं।'
(ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड २ पृष्ठ २०९)
'
कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मन्दिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरों को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २२२)

इस्लाम का कालिंजर में प्रवेश

'मन्दिरों को तोड़कर, भलाई के आगार, मस्जिदों में रूपान्तरित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामो निशान मिटा दिया गया....पचार हजार व्यक्तियों को घेरकर बन्दी बना लिया गया और हिन्दुओं को तड़ातड़ मार (यन्त्रणा) के कारण मैदान काला हो गया।
(उसी पुस्तक में पृष्ठ २३१)
'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया, और सम्पूर्ण देश को बहुदेवतावाद और मूर्तिपूजा से मुक्त कर दिया, और अपने शाही उत्साह, निडरता और शक्ति द्वारा किसी भी मन्दिर को खड़ा नहीं रहने दिया।'
(वही पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)

ग्वालियर में इस्लाम

ग्वालियर में कुतुबुद्दीन के जिहाद के विषय में मिन्हाज़ ने लिखा था- 'पवित्र धर्म युद्ध के लिए अल्लाह के, दैवी, यानी कि कुरान के आदेशानुसार धर्म शत्रुओं-हिन्दुओं-के विरुद्ध उन्होंने रक्त की प्यासी तलवारें बाहर निकाल लीं।'
(टबाकत-ई-नासिरी, मिन्हाज़-उज़-सिराज, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २२७)



मुहम्मद बखितयार खिलजी (१२०४-१२०६)

मुहम्मद बखितयार खिलजी को हिन्दू/बुद्ध शिक्षा केन्द्रों को खोजने और नष्ट करने की विशेष रुचि थी। नालन्दा की लूट के विषय में मिन्हाज़ ने लिखा था-
'बखितयार बेहर किले के द्वार पर पहुँचा और हिन्दुओं के साथ युद्ध करने लगा। बड़े साहस और अहंकार के साथ द्वार की ओर झपटा और स्थान को अपने अधिकार में कर लिया। विजेताओं के हाथ लूट का अपार माल हाथ लगा। निवासियों में अधिकांश नंगे-मुड़े हुए सिर वाले ब्राहम्ण थे। उनका, सभी का, वध कर दिया गया। वहाँ असंखय पुस्तकें मिलीं और मुसलमानों ने उन्हें देखा और किसी को बुलाकर जानना चाहा कि उनमें क्या लिखा है तो पाया कि वहाँ तो सभी का वध हो चुका है। उनकी समझ में आया कि वह सारा, एक शिक्षा का स्थान है तो सारे स्थल को जलाकर भस्म कर दिया।
(तबाकत-ई-नासिरी, मिन्हाज़-उज़-सिराज, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ ३०६)



अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६)


सोमनाथ का विध्वंस

खिलजी दरबार के सामयिक मुस्लिम इतिहास लेखक, जियाउद्‌दीन बरानी ने अपने प्रसिद्ध प्रलेख-तारीख-ई-शाही-में लिखा था, 'सारा गुजरात अलाउद्दीन की सेना का शिकार हो गया और सोमनाथ की मूर्ति, जो मुहम्मद गौरी के गज़नी चले जाने के बाद पुनः स्थापित कर दी गई थी, को हटाकर दिल्ली ले आया गया और लोगों के पैरों तले कुचले जाने, अपमानित किये जाने, के लिए डाल दी गई।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही : जियाउद्‌दीन बारानी, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १६३)


अधिक दास, धर्मान्तरित और हिन्दू महिलायें

'अलाउद्दीन की सेनायें सम्पूर्ण देश के एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्रों में गईं और विनाश किया। वे अपने साथ अधिकाधिक दास, धर्मान्तरित लोग और हिन्दू महिलाओं को लाये।


तलवार स्थापित करती है इस्लाम

बरानी ने अपने उसी प्रलेख में लिखा था, स्पष्ट किया था, कि उल्लाउद्‌दीन शोखी में क्या चिल्लाया करता था, 'अल्लाह ने पैगम्बर को आशीर्वाद स्वरूप चार मित्र दिये...मैं उन चारों के सहयोग से अल्लाह के सच्चे पन्थ और कौम को स्थापित कर दूंगा और मेरी तलवार, उस पन्थ को स्वीकार करने के लिए विवश कर देगी।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १६९)


गाजी लोग पुनः गुजरात गये

अब्दुल्ला वस्साफ ने अपने इतिहास प्रलेख-तारीख-ई-वस्साफ-में लिखा था-'उन्होंने कम्बायत को घेर लिया और मूर्ति पूजक अपनी निद्रा जैसी लापरवाही की दशा से जगा दिये गये और आश्चर्यचकित हो गये। मुसलमानों ने इस्लाम के लिए पूर्ण निर्दयतापूर्वक चारों ओर-दायी ओर बाईं ओर-सारी अपवित्र भूमि पर वध और कत्ल शुरू कर दिये और रक्त मूसलाधार वर्षा के रूप में बहा।'
(तारीख-ई-वस्साफ अब्दुल्ला वस्साफ अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ४२-४३)

लूट और मूर्ति भन्जन

जियाउद्दीन बरानी की भाँति अब्दुला वस्साफ ने भी अल्लाउद्दीन द्वारा सोमनाथ की लूट का विस्तृत सजीव विवरण लिखा था। अपने प्रलेख में वस्साफ ने लिखा था-
'उन्होंने लगभग बीस हजार सुन्दर सभ्य हिन्दू महिलाओं को बन्दी बना लिया और दोनों ही लिंगों के अनगिनत बच्चों को, जिनकी संखया लेखनी लिख भी न सके, भी बन्दी बना लिया....संक्षेप में मुहम्मद की सेना ने सम्पूर्ण देश का विकराल विनाश किया, निवासियों के जीवनों को नष्ट किया, शहरों को लूटा; और उनके बच्चों को बन्दी बनाया, जिसके कारण बहुत से मन्दिरों को त्याग दिया गया, मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और पैरों के नीचे रौंदी गईं; उनमें सबसे बड़ी मूर्ति सोमनाथ की थी-मूर्ति खण्डों को देहली भेज दिया गया और जामा मस्जिद के प्रवेश मार्ग को उनसे ढक दिया, भर दिया, ताकि लोग इस विजय को स्मरण करें, बातचीत करें।'
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ४४)
'
प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरु ने लिखा था-'हमारे पवित्र सैनिकों की तलवारों के कारण सारा देश एक दावा अग्नि के कारण काँटों रहित जंगल जैसा हो गया है। हमारे सैनिकों की तलवारों के वारों के कारण हिन्दू अविश्वासी भाप की तरह समाप्त कर दिये गये हैं। हिन्दुओं में शक्तिशाली लोगों को पाँवों तले रोंद दिया गया है। इस्लाम जीत गया है, मूर्ति पूजा हार गई है, दबा दी गई है।'
(तारीख-ई-अलाई अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III )

अल्लाह दक्षिण-भारत में प्रकट हुआ

निजामुद्‌दीन औलिया जो दूर-दूर तक देहली के सूफी चिश्ती के रूप में विखयात है, के कवि शिष्य, अमीर खुसरु, ने अपने प्रलेख-तारीख-ई-अलाई-में अलाउद्‌दीन द्वारा दक्षिण भारत में जिहाद का बड़े आनन्द के साथ विवरण किया है-
'उस समय के खलीफा की तलवार की जीभ, जो कि इस्लाम की ज्वाला की भी जीभ है, ने सारे हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण अँधेरे को अपने मार्गदर्शन द्वारा प्रकाश दिया है...दूसरी ओर तोड़े गये सोमनाथ मन्दिर से इतनी धूल उड़ी जिसे समुद्र भी, भूमि पर नीचें स्थापित नहीं कर सका; दायीं ओर बायीं ओर, समुद्र से लेकर समुद्र तक हिन्दुओं के देवताओं की अनेकों राजधानियों को, जहाँ जिन्न के समय से ही शैतानी बसती थी, सेना ने जीत लिया है और सभी कुछ विध्वंस कर दिया गया है। देवगिरी (अब दौलता बाद) में अपने प्रथम आक्रमण के प्रारम्भ द्वारा, सुल्तान ने, मूर्ति वाले मन्दिरों के ध्वंस द्वारा, गैर-मुसलमानों की सारी अपवित्रताओं को समाप्त कर दिया है। ताकि अल्लाह के कानून के प्रकाश की किरणें, लपटें, इन अपवित्र देशों को पवित्र व प्रकाशित करें, मस्जिदों में नमाज़ें हों और अल्लाह की प्रशंसा हो।'
(तारीख-ई-अलाई अमीर खुसरु - अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ८५)

इस्लामी कानून के अन्तगत हिन्दू

बर्नी ने अपने प्रलेख में आगे लिखा कि- 'सुल्तान ने काजी से पूछा कि इस्लामी कानून में हिन्दुओं की क्या स्थिति है? काज़ी ने उत्तर दिया, 'ये भेंट (टैक्स) देने वाले लोग हैं और जब आय अधिकारी इनसे चाँदी मांगें तो इन्हें बिना किसी, कैसे भी प्रद्गन के, पूर्ण विनम्रता, व आदर से सोना देना चाहिए। यदि अफसर इनके मुँह में धूल फेंकें तो इन्हें उसे लेने के लिए अपने मुँह खोल देने चाहिए। इस्लाम की महिमा गाना इनका कर्तव्य है...अल्लाह इन पर घृणा करता है, इसीलिए वह कहता है, 'इन्हें दास बना कर रखो।' हिन्दुओं को नींचा दिखाकर रखना एक धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि हिन्दू पैगम्बर के सबसे बड़े शत्रु हैं (कु. ८ : ५५) और चूंकि पैगम्बर ने हमें आदेश दिया है कि हम इनका वध करें, इनको लूट लें, इनको बन्दी बना लें, इस्लाम में धर्मान्तरित कर लें या हत्या कर दें (कु. ९ : ५)। इस पर अलाउद्‌दीन ने कहा, 'अरे काजी! तुम तो बड़े विद्वान आदमी हो कि यह पूरी तरह इस्लामी कानून के अनुसार ही है, कि हिन्दुओं को निकृष्टतम दासता और आज्ञाकारिता के लिए विवश किया जाए...हिन्दू तब तक विनम्र और दास नहीं बनेंगे जब तक इन्हें अधिकतम निर्धन न बना दिया जाए।'

(तारीख-ई-फीरोजशाही-बारानी अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १८४-८५)
बारानी की तारीख-ई-फीरोजशाही के संदर्भ में मोरलैण्ड ने अपने प्रसिद्ध शोध, 'अग्रेरियन सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया' में लिखा है-'सुल्तान ने इस्लामी विद्वानों से उन नियमों और कानूनों को पूंछा, माँगा, ताकि हिन्दुओं को पीसा जा सके, सताया जा सके, और सम्पत्ति और अधिकार, जिनके कारण घृणा और विद्रोह होते हैं, उनके घरों में न रहें।'
(मोरलैण्ड-दी ऐग्रेरियान सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया एण्ड दी देहली सुल्तनेट, भारतीय विद्या भवन द्वितीय आवृत्ति पृष्ठ २४)
'
इस सन्दर्भ में बारानी ने बताया कि अलाउद्‌दीन ने हिन्दुओं की दशा इतनी हीन, पतित और कष्ट युक्त बना दी थी, और उन्हें इतनी दयनीय दशा में पहुँचा दिया था, कि हिन्दू महिलाएं और बच्चे वे मुसलमानों के घर भीख माँगने के लिए विवश थे।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही और फ़तवा-ई-जहानदारी : एलियट और डाउसन, खण्ड III)

हिन्दू दासों का बाजार

बिन कासिम की बलात विजय के पश्चात्‌ सभी मुस्लिम शासकों के लिए दास हिन्दुओं की क्रय-विक्रय सरकारी आय का एक
महत्वपूर्ण स्त्रोत था। किन्तु खिलजियों और तुगलकों के काल में हिन्दुओं पर इन यातनाओं का स्वरूप गगन चुम्बी एवं अधिकतम हो गया था। अमीर खुसरु ने बताया- 'तुर्क जब चाहते थे हिन्दुओं को पकड़ लेते, क्रय कर लेते अथवा बेच देते थे।'
(अमीर खुसरु : नूर सिफर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५६१)
बरनी ने आगे लिखा कि 'घर में काम अने वाली वस्तुएँ जैसे गेहूँ, चावल, घोड़ा और पशु आदि के मूल्य जिस प्रकार निश्चित किये जाते हैं, अलाउद्‌दीन ने बाजार में ऐसे दासों के मूल्य भी निश्चित कर दिये। एक लड़के का विक्रय मूल्य २०-३० तन्काह तय किया गया था; किन्तु उनमें से अभागों को मात्र ७-८ तन्काह में ही खरीदा जा सकता था। दास लड़कों का उनके सौन्दर्य और कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। काम करने वाली लड़कियों का मानक मूल्य ५-१२ तन्काह, अच्छी दिखने वाली लड़की का मूल्य २०-४० तन्काह, और सुन्दर उच्च परिवार की लड़की का मूल्य एक हजार से लेकर दो हजार तन्काह होता था।'
(बरानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III ,हिस्ट्री ऑफ खिलजीज़, के. एस. लाल, पृष्ठ ३१३-१५)

सूडान के इस्लामी राज्य में अब भी ईसाइयों को दास बनाया जाता है और बेचा जाता है। इसी कारण से १९९९ में यू.एन. की जनरल एसैम्बली में अनेकों ईसाई देशों ने संगठित होकर सूड़ान के यू. एन. एसैम्बली से निष्कासन के लिए प्रस्ताव रखा था।


मुहम्मद बिन तुगलक (१३२६-१३५१)

'मार्क्सिस्ट जाति के भारतीय इतिहासज्ञों ने, बिन तुगलक का, एक सदभावना युक्त, उदार और कुछ विक्षिप्त सुधारक के रूप में बहुत लम्बे काल से, स्वागत किया है, प्रशंसा की है। नेहरूवादी प्रतिष्ठान ने तो देहली की एक प्रसिद्ध सड़क का नाम भी उसकी स्मृति में तुगलक रोड रख दिया। किन्तु एक प्रसिद्ध, विश्व भ्रमणकर्ता, अफ्रीकी यात्री, इब्न बतूता, जिसने तुगलक के दरबार को देखा था, के शब्दानुसार उसके (तुगलक के) राज्य के कुछ दृश्य निम्नांकित हैं।
सुल्तान से अपनी पहली भेंट के संदर्भ में, बतूता ने लिखा था, ५००० दीनार के मूल्य के गाँव, एक घोड़ा, दस हिन्दू महिला दासियाँ और ५०० दीनार मुझे अनुदान स्वरूप मिले। (इब्न बतूता : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८६)
हिन्दुओं को दास बनाने के काम के कारण बिन तुगलक इतना बदनाम हो गया था कि उसकी खयाति दूर-दूर चारों ओर फैल गई थी कि इतिहास अभिलेखक शिहाबुद्‌दीन अल-उमरी ने अपने अभिलेख, 'मसालिक-उल-अब्सर में उसके (बिन तुगलक)विषय में इस प्रकार लिखा था-'सुल्तान गैर-मुसलमानों पर युद्ध करने के अपने सर्वाधिक उत्साह में कभी भी, कोई, कैसी भी कमी नहीं करता था...हिन्दू बन्दियों की संखया इतनी अधिक थी कि प्रतिदिन अनेकों हजार हिन्दू दास बेच दिये जाते थे।'
(मसालिक-उल-अब्सार : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८०)
मुस्लिम हाथों में हिन्दू महिलाओं का उपयोग या तो काम तृप्ति के लिए था या विद्रोह कर धन कमाना था। अल-उमरी आगे और कहता है।'दासों के मूल्यों में कमी होने पर भी युवा हिन्दू लड़कियों के मूल्य में २,००,००० तनकाह दिये जाते थे। मैंने इसका कारण पूछा...ये लड़कियाँ अपने सौन्दर्य, आकर्षण, महिमा और ढंगों में आश्चर्यजनक हैं।'
(उसी पुस्तक में पृद्गठ ५८०-८१)
इस सन्दर्भ में सुल्तान द्वारा हिन्दुओं को दास बनाये जाने का इब्नबतूता का प्रत्यक्ष दर्शी वर्णन इस प्रकार है- 'सर्वप्रथम युद्ध के मध्य बन्दी बनाये गये, काफिर राजाओं की पुत्रियों को अमीरों और महत्वपूर्ण विदेशियों को उपहार में भेंट कर दिया जाता था। इसके पश्चात् अन्य काफिरों की पुत्रियों को...सुल्तान दे देता था अपने भाइयों व सम्बन्धियों को।'
(तुगलक कालीन भारत, एस. ए.रिज़वी, भाग १, पृष्ठ १८९)

हिन्दू सिरों का शिकार

अन्य राजाओं की भाँति बिन तुगलक भी शिकार को जाया करता था किन्तु यह शिकार पूर्णतः असाधारण रूप में भिन्न ही हुआ करती थी। वह शिकार होती थी हिन्दू सिरों की। इस विषय में इब्न बतूता ने लिखा था- 'तब सुल्तान शिकार के अभियान के लिए बारान गया जहाँ उसके आदेशानुसार सारे हिन्दू देश को लूट लिया गया और विनष्ट कर दिया गया। हिन्दू सिरों को एकत्र कर लाया गया और बारान के किले की चहार दीवारी पर टाँग दिया गया।'
(इब्न बतूता : एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २४२)


फिरोज़ शाह तुग़लक (१३५७-१३८८)


फिरोजशाह तुगलक के शासन का वर्णन चार भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में लिखा गया है। वे अभिलेख हैं- १. तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्‌दीन बारानी, २. तारीख-ई-फिरोजशाही, सिराज अफीफ, ३. सिरात-ई-फिरोजशाही, फरिश्ता, ४. फुतूहत-ई-फिरोजशाही, फीरोजशाह तुगलक स्वयं।


हिन्दू महिलाओं का हरम या ज़नानखाना

काम तृप्ति के लिए हिन्दू महिलाओं के दासी बनाये जाने के विद्गाय में बारानी ने लिखा था- 'फिरोजशाह के लिए, व्यापक एवम्‌ विविध वर्गों की भगाई गई हिन्दू महिलाओं के जनानखानों में नियमित रूप में जाना, एकदम अत्याज्य था।'
(तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्‌दीन बारानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III)
ताजरीयत-अल-असर के अनुसार 'मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं द्वारा भगाई हुई हिन्दू महिलाओं के साथ मात्र शील भंग ही नहीं किया जाता था वरन्‌ उनके साथ अनुपम, अवर्णनीय यातनायें भी दी जाती थीं यथा लाल गर्म लोहे की शलाखों को हिन्दू महिलाओं की योनियों में बलात घुसेड़ देना, उनकी योनियों को सिल देना, और उनके स्तनों को काट देना।'


बंगाल में नर संहार

'बंगाल में हार के बदले के लिए, फीरोजशाह ने आदेश दिया कि असुरक्षित बंगाली हिन्दुओं का अंग भंग कर वध कर दिया जाए। अंग भंग किये गये प्रत्येक हिन्दू के ऊपर इनाम स्वरूप एक चाँदी को टंका दिया जाता था। हिन्दू मृतकों के सिरों की गिनती की गई जो १,८०,००० निकले'
(बारानी, उसी पुस्तक में)

ज्वालामुखी मंदिर का विनाश

फरिद्गता ने आगे लिखा- 'सुल्तान ने ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्तियों को तोड़ दिया, उसके टुकड़ों को वध की गई गउओं के मांस में मिला दिया और मिश्रण को तोबड़ों में भरवा कर ब्राहम्णों की गर्दनों में बँधवा दिया, और प्रमुख मूर्ति को मदीना भेज दिया।'
(उसी पुस्तक में)

उड़ीसा का विध्वंस

सिरात-ई-फीरोजशाही में फरिश्ता ने लिखा-
'फिरोज़शाह, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में, घुसा, मूर्ति को उखाड़ा और अपमान कारक स्थान पर रखने के लिए देहली ले गया। पुरी के पश्चात्‌ फीरोजशाह समुद्रतट के निकट चिल्ला झील की ओर गया। सुल्तान ने टापू को अविश्वासियों के वध द्वारा उत्पन्न रक्त से रक्त हौज बना दिया। हिन्दू महिलाओं को काम तृप्ति के लिए भगा ले जाया गया, गर्मिणी महिलाओं का शील भंग किया गया, उनकी आँते निकाल ली गईं और जंजीरों में बाँध दिया गया।'
(सीरात-ई-फिरोजशाही फरिद्गता, एलियट और डाउसन, खण्ड प्प्प्)

इस संदर्भ में यह लिखने योग्य है कि एक अन्य महत्वपूर्ण सड़क और देहली के क्रिकेट स्टेडियम का नाम इस उपरोक्त गाजी फिरोज़शाह के नाम पर है।



तिमूर (१३९८-१३९९)

तिमूर ने अपनी जीवनी मुलफुजात-ई-तिमूरी (तुजुख-ई-तिमूरी) में अपनी महत्वाकांक्षाओं को बलपूर्वक लिखा- 'लगभग उसी समय मेरे मन में एक अभिलाषा आयी कि मैं गैर-मुसलमानों के विरुद्ध एक अभियान प्रारम्भ करूं और 'गाजी' बन जाऊँ; क्योंकि मेरे कानों में यह बात पहुँची थी कि अविश्वासियों का कातिल 'गाज़ी' हो जाता है और यदि वह स्वयं मर जाता है तो 'शहीद' हो जाता है (सूरा ३ आयत १६९, १७०, १७१) इसी कारण मैंने एक निश्चय किया किन्तु मैं अपने मन में अनिश्चित अनिर्णीत था कि मैं चीन के अविश्वासियों की ओर अभियान प्रारम्भ करूँ अथवा भारत के अविश्वासियों और मूर्ति पूजकों व बहु ईश्वर वादियों की ओर। इस उद्‌देश्य के लिए मैंने कुरान से शकुन (शुभ सूचना) खोजना चाही और जो आयत निकली वह इस प्रकार थी, 'ए! पैगम्बर अविश्वासियों और विश्वासहीनों के विरुद्ध युद्ध करो, और उनके प्रति कठोरता का व्यवहार करो (सूरा ६६ आयत ९ दी कुरान)। मेरे महान अफसरों ने बताया कि हिन्दुस्तान के निवासी, अविश्वासी और विश्वासहीन हैं। सर्वशक्तिमान अल्लाह के आदेशानुसार आज्ञापालन करते हुए मैंने उनके विरुद्ध अभियान की आज्ञा दे दी।'
(तिमूर की जीवनी-मुलफुजात-ई-तिमूर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ३९४-९५)


उलेमा और सूफ़ियों द्वारा जिहाद का अनुमोदन

'इस्लाम के विद्वान लोग मेरे सामने आये और अविश्वासियों तथा बहुत्ववादियों के विरुद्ध संघर्ष/युद्व के विषय में वार्तालाप प्रारम्भ हुआ;उन्होंने अपनी सम्मति दी कि इस्लाम के सुल्तान का और उन सभी लोगों का, जो मानते हैं, 'कि अल्लाह के सिवाय अन्य कोई ईश्वर नहीं है और मुहम्मद अल्लाह का पैगम्बर है', यह परम कर्तव्य है कि वे इस उद्‌देश्य की पूर्ति के लिए युद्ध करें कि उनका पन्थ सुरक्षित रह सके, और उनकी विधि व्यवस्था सशक्त रही आवे और वे अधिकाधिक परिश्रम कर अपने पन्थ के शत्रुओं का दमन कर सकें। विद्वान लोगों के ये आनन्ददायक शब्द जैसे ही सरदारों के कानों में पहुँचे उनके हदय, हिन्दुस्तान में धर्म युद्ध करने के लिए, स्थिर हो गये और अपने घुटनों पर झुक कर, उन्होंने इस विजय वाले अध्याय को दुहराया।'
(उसी पुस्तक में, पृष्ठ ३९७)

भाटनिर में नरसंहार (कसाई पन)

तिमूर की यह जीवनी, भाटनिर (जो आजकल राजस्थान के गंगानगर जिले का हनुमान गढ़ है) को मूर्ति पूजा से सुरक्षित करने के विषय में एक अति विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है।
'इस्लाम के योद्धाओं ने हिन्दुओं पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया और तब तक युद्ध करते रहे जब तक अल्लाह की कृपा से मेरे सैनिकों के प्रयासों को विजय की किरण नहीं दीख गई। बहुत थोड़े समय में ही किले के सभी व्यक्ति तलवार द्वारा काट दिये गये और समय की बहुत छोटी अवधि में ही दस हजार हिन्दू लोगों के सिर काट दिये गये। अविश्वासियों के रक्त से इस्लाम की तलवार अच्छी तरह धुल गई और सारा खजाना सैनिकों की लूट का माल हो गया।'
(वही पुस्तक, पृष्ठ ४२१-२२)

सिरसा में नरसंहार

'तिमूर ने आगे लिखा- जब मैंने सरस्वती नदी के विषय में पूछा, मुझे बताया गया कि उस स्थान के लोग इस्लाम के पंथ से अनभिज्ञ थे। मैंने अपनी सैनिक टुकड़ी उनका पीछा करने भेजी और एक महान युद्ध हुआ। सभी हिन्दुओं का वध कर दिया गया उनकी महिलाओं और बच्चों को बन्दी बना लिया गया और उनकी सम्पत्तियाँ व वस्तुएँ मुसलमानों के लिए लूट का माल हो गईं। सैनिक अपने साथ कई हजार हिन्दू महिलाओं और बच्चों को साथ ले वापिस लौट आये। इन हिन्दू महिलाओं और बच्चों को मुसलमान बना लिया गया।'
(वही पुस्तक, पृष्ठ ४२७-२८)

जाटों का नरसंहार

तिमूर ने अपनी जीवनी में लिखा था- 'मेरे ध्यान में लाया गया था कि ये उत्पाती जाट चींटी की भाँति असंखय हैं। हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा महान्‌ उद्‌देश्य अविश्वासी हिन्दुओं के विरुद्ध धर्म युद्ध करना था। मुझे लगने लगा कि इन जाटों का पराभव (वध) कर देना मेरे लिएआवश्यक है। मैं जंगलों और बीहड़ों में घुस गया, और दैत्याकार, दो हजार जाटों का मैंने वध कर दिया...उसी दिन सैय्यदों, विश्वासियों, का एक दल, जो वहीं निकट ही रहता था, बड़ी विनम्रता व शालीनता से मुझसे भेंट करने आया और उनका बड़ी शान से स्वागत किया गया। मैंने उनके सरदार का बड़े सम्मान से स्वागत किया।'
(उसी पुस्तक में, पृष्ठ ४२९)
सैक्यूलरिस्टों, जो अपने हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई के उन्माद युक्त सिद्धांत से बुरी तरह पगलाये रहते हैं, के लिए यह पाठ बहुत अधिक महत्व का है। यहाँ सैय्यद मुसलमान, अपने पड़ौसी जाटों के साथ न तो तनिक भी सहयोगी हुए, और न उन्होंने उनके साथ कोई कैसी भी सहानुभूति ही दिखाई; वरन्‌ अपने पन्थ के आक्रमणकारियों, द्वारा जाटों के नरसंहार पर खूब प्रसन्न हुए।
मुसलमान सैय्यदों का यह व्यवहार सभ्यता के माप दण्डों से बेमेल भले ही हो किन्तु वह कुरान के आदेशों के सर्वथा, पूर्णरूपेण, अनुकूल ही था यथा-

'विश्वासियो! मुसलमानों को छोड़ गैर-मुसलमानों को अपना मित्र मत बनाओ। उन्हें मित्रता के लिए मत चुनो। क्या तुम अल्लाह को अपने विरुद्ध एक सच्चा साक्ष्य प्रस्तुत करोगे?
(सूरा ४ आयत १४४)


लोनी में चुन चुन कर कत्लेआम

जमुना के उस पार देहली के निकट शहर, लोनी, की बलात विजय का वर्णन करते हुए तिमूर लिखता है कि उसने किस प्रकार मुसलमानों की जान बचाते हुए, चुन चुन कर हिन्दुओं का वध किया था।

'उन्तीस तारीख को मैं पुनः अग्रसर हुआ और जमुना नदी पर पहुँच गया। नदी के दूसरे किनारे पर लोनी का दुर्ग था। दुर्ग को तुरन्त विजय कर लेने का मैंने निर्णय किया। अनेकों राजपूतों ने अपनी पत्नियों और बच्चों को में घरों में बन्द कर आग लगा दी; और तब वे युद्ध क्षेत्र में आ गये, शैतान की भाँति लड़े, और अन्त में मार दिये गये। दुर्ग रक्षक दल के अन्य लोग भी लड़े, और कत्ल कर दिये गये और बहुत से बन्दी बना लिये गये। दूसरे दिन मैंने आदेश दिया कि मुसलमान-बन्दियों को पृथक्‌ कर दिया जाए, और बचा लिया जाए किन्तु गैर-मुसलमानों को धर्मान्तरणकारी तलवार द्वारा कत्ल कर दिया जाए। मैंने यह आदेश भी दिया कि मुसलमानों के घरों को सुरक्षित रखा जाए, किन्तु अन्य सभी घरों को लूट लिया जाए, और विनष्ट कर दिया जाए।'
(मुलफुज़ात-ई-तिमूरी, एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ४३२-३३)

एक लाख असहाय हिन्दुओं का एक ही दिन में कत्ल

हिन्दुओं के वध एवम्‌ रक्त पात में उसे कैसा व कितना आनन्द आता है, इसके विषय में तिमूर ने लिखा था- 'अमीर जहानशाह और अमीर सुलेमान शाह और अन्य अनुभवी अमीरों ने मेरे ध्यान में लाया, यानी कि मुझसे कहा, कि जब से हम हिन्दुस्तान में घुसे हैं तब से अब तक हमने १००००० हिन्दू बन्दी बनाये हैं और वे सभी मेरे डेरे में हैं। मैंने बन्दियों के विषय में उनका परामर्श माँगा, और उन्होंने कहा, कि बड़े युद्ध के दिन इन बन्दियों को लूट के सामान के साथ नहीं छोड़ा जा सकता; और इस्लामी युद्ध नीति व नियमों के सर्वथा विरुद्ध ही होगा कि इन बन्दियों को मुक्त कर दिया जाए। वास्तव में उन्हें तलवार द्वारा कत्ल कर देने के अतिरिक्त विकल्प ही नहीं था। जैसे ही मैंने इन शब्दों को सुना, मैंने पाया कि वे इस्लामी युद्ध के नियमों के अनुरूप् ही थे, और मैंने सीधे ही सभी डेरों में आदेश दे दिया, कि प्रत्येक व्यक्ति जिसके पास युद्ध बन्दी हैं, उन्हें मृत्यु को सौंप दें, यानि कि उनका वध कर दें। इस्लाम के गाजियों को जैसे ही आदेशों का ज्ञान हुआ, उन्होंने बन्दियों को मौत के घाट उतार दिया। १००००० 'अविश्वासी', 'अपवित्र मूर्ति पूजक', (हिन्दू) उस दिन कत्लकर दिये गये। मौलाना नसीरुद्‌दीन उमर, एक परामर्श दाता और विद्वान, जिसने अपने सारे जीवन में जहाँ एक चिड़िया भी नहीं मारी थी, मेरे आदेश के पालन में, उसने अपने पन्द्रह हिन्दू बन्दियों का वध कर दिया।
(उसी पुस्तक में, पृष्ठ ४३५-३६) (सूरा ८ आयत ६७ कुरान)


दिल्ली में चुन चुनकर कत्ल

'महीने की छः तारीख को मैंने देहली को लूट लिया, ध्वंस कर दिया। हिन्दुओं ने अपने ही हाथों अपने घरों में आग लगा दी, और अपनी पत्नियों और बच्चों को उन घरों के भीतर जला दिया, और युद्ध में दैत्यों की भाँति कूद पड़े, और मार दिये गये...उस दिन बृहस्पतिवार को और शुक्रवार की पूरी रात्रि को लगभग पन्द्रह हजार तुर्क, वध करने, लूटने और विनाश कार्य में लिप्त थे...अगले दिन शनिवार को भी पूरे दिन उसी प्रकार का क्रिया कलाप चलता रहा और बर्बादी व लूट इतनी अधिक थी कि प्रत्येक व्यक्ति के भाग पचास से लेकर सौ तक बन्दी-पुरुष, महिला व बच्चे-आये। कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसके पास बीस बन्दी न हों। और दूसरे प्रकार की लूट भी माणिक, मोती, हीरों के रूप में अथाह व असीमित थी। औरतें तो इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध थीं, कि गणना से भी परेथीं। उलेमाओं और दूसरे मुसलमानों को छोड़, सभी का वध कर दिया गया और सारे शहर को विध्वंस का दिया।'
(उसी पुस्तक में, पृष्ठ ४४५-४६)
मोहम्मद हबीब और ए. के. निजामी ने, ए कम्प्रीहैन्सिव हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, खण्ड ५ दी 'सुल्तानेट्‌स', (पृष्ठ १२२) पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली, पुस्तक में से बन्दी व वध हुए हिन्दू पुरुष महिला बच्चों सम्बन्धी इस लेख में से 'हिन्दू' शब्द को जानबूझ कर हटा दिया गया है। यह है उदाहरण हमारे सैक्यूलरवादी इतिहासज्ञों की बुद्धिवादी ईमानदारी का!


यमुना के किनारे-किनारे जिहाद

तिमूर ने लिखा था- 'जुमादा-ई-अव्वाल के पहले दिन मैंने अपनी सेना की बाईं ओर के भाग, को अमीर जहाँशाह के नेतृत्व में सौंप दिया और आदेश दे दिया कि यमुना के किनारे-किनारे ऊपर की ओर अग्रसर हुआ जाए और मार्ग में आने वाले प्रत्येक दुर्ग, शहर व गाँव को विजय किया जाए और देश के सभी गैर-मुसलमानों को तलवार से काट दिया जाए...मेरे वीर अनुयायियों ने आज्ञा पालन किया और शत्रुओं का पीछा किया और उनमें से बहुतों को मार दिया और उनकी पत्नियों और बच्चों को बन्दी बना लिया। जब अल्लाह की कृपा से मैंने विजय प्राप्त कर ली। मैं अपने घोड़ों से उतर आया और अल्लाह को धन्यवाद देने के लिए भूमि पर लेट गया और साष्टांग प्रणाम किया।
(उसी पुस्तक में, पृष्ठ ४५१-५४)


हरिद्वार के कुम्भ मेले में रक्तपात

तिमूर ने आगे लिखा था-' मेरे वीर आदमि