सोमवार, 19 नवंबर 2012

ज्ञान से आचरण बड़ा

           राज दरबार में एक राज पुरोहित आते थे। वे बहुत बड़े ज्ञानी थे। राजा उनका बहुत सम्मान करते रहे। जब भी राज पुरोहित आ जाते राजा उठकर खड़े हो जाया करते थे। अक्सर दरबार में चर्चा होती रहती की ज्ञान बड़ा की आचरण? सभी लोग ज्ञान को ही महत्त्व देते थे। एक दिन राज पुरोहित ने एक प्रयोग करना चाहा। वे एक दिन राजा के कोषागार गए। खजांची ने उनका स्वागत  किया। राजपुरोहित ने खजांची की नजर बचाकर 2 मोती उठा लिए।  खजांची ने भी उन्हें देख लिए। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। दुसरे तीसरे दिन भी वैसा ही हुआ। राज पुरोहित जी आते और 2 मोती चुरा के चले जाते। खजांची ने राजा को सारी बाते बता दी। राजा के मन में पुरोहित के प्रति अश्रद्धा हो गई। वे अब पुरोहित के दरबार में आनेपर भी नहीं उठते थे। एक दिन राजा ने पुरोहित कहा- आप चोरी क्यों करते हो? ऐसा करेंगे तो आप यहाँ नहीं रह पाएंगे। राजपुरोहित जी समझ गए। परिक्षण हो गया है।  राज पुरोहित जी ने कहा- राजन! मैं चोरी इसलिए करता था की मैं जानना चाहता था की ज्ञान बड़ा की आचरण? मैंने चोरी की, मेरे ज्ञान में कोई अंतर नहीं आया। परन्तु मेरे आचरण में अंतर आया इसीलिए आप की मेरे उपर अश्रद्धा  हो गई। बात सिद्ध हो गई की मेरी प्रतिष्ठा का कारण आचरण है ज्ञान नहीं। आचरण से ही आदमी बड़ा होता है।

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