शुक्रवार, 25 मार्च 2011

दलितों  का उत्थान  काल
आज से करीब पांच हजार वर्ष पहले एक पवित्र दलित माँ मत्स्यगंधा के सुपुत्र महर्षि वेद व्यास ने गहरी सांस ली और वे सोचने लगे-   
                                                     स्त्रिशुद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुति गोचरा
                                                     कर्म श्रेयसी  मूढानाम  श्रेय एव भवेदिह
सभी वर्णों की स्त्रियाँ ,बहुजन दलित समाज और पतित ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य जिन्हों  ने वैदिक निनिनियमों का उअल्लाघन किया है जिनको द्विज नहीं द्विज्बंधू कहा जता है.उअनाका  उधर कैसे हो?      
आज सम्पूर्ण हिन्दू जाती दलितों के उत्थान के लिए कृत संकल्प है. सभी लोग चाहते है की दलितों का हित हो. उनके लिए अनेको प्रकार की योजनायें, आरक्षण उसी का अंग है.तभी तो कुच्छ लोगों के रोनेगाने के ऊपर ध्यान न देते हुए बहु संख्यक समाज ने इसको स्वीकार किया.आज समाज में बहुत कुछ बदलाव है.
              १) रही बात ब्राह्मणों की तो उन्होंने पंडिता समदर्शिन समदर्शी होने के सिधांत को भुलाकर बहुत बड़ी बड़ी भूले की है. इसका परिणाम हम सब भोग रहे है. ..मै सभी समाज के बिच में रहता हूँ.ब्राह्मण जाती भी दलितों का हित चाहती है.अभी भी बहुत कुछ कचरा बाकि है.समय के साथ वह भी हट जाएगा.
             ४) दलित जाती में भी बड़े बड़े विद्वान् लोग हुए है.अभी सब लोग देख, पढ़  सुन रहे है पूज्य रामदेव बाबा जी दलित है. शुद्र है परन्तु वे आज योगगुरु है.सभी भारतीयों के वे आदरणीय है. हिन्दू धर्म में एक दलित भी इतना बड़ा पूजनीय बन सकता है यह हिन्दू धर्म ने दिखा दिया है. एक मोहमद रामायणी है. बहुत प्रसिद्ध एवं उच्च कोटि के रामायण के विद्वान् समाननीय है.वे मुस्लिम धर्म से है. बड़े बड़े साधू जन उन से निचे बैठकर उनसे कथा सुनते है.मोफत्लाल ग्रुप जैसे लोग उनके सिष्य है.अब वे साधू वेष में आ गए है. उनका नाम है स्वामी राजेश्वरानन्द जी महाराज.
               २) मेरे प्रवचन नहीं करने से जदी दलितों का हित हो तो आज ही बंद कर दूँ.मुझे लगता है मै समत्व मूलक समाज के निर्माण में ही काम कर रहा हूँ.मेरे प्रवचन समत्वमुलक विचारों को आगे बढ़ाते है.मै उन्हें उनकी ऐतिहासिक भूलों को दीखता हु. सभी महात्माओं के प्रवचनों  में दलित,ब्राह्मण,यादव,अहीर,मुसलमा
न,कुर्मी,क्षत्रिय,वैश्य सभी समाज के लोग रहते है.सब सामान रूप से साथ में भोजन प्रसाद लेते है.
             ३) दलितों का शोषण तो सब ने किया है.यहाँ कोई  भी राजा आया उसने दलितों को मजदुर ही बनाकर रखा.चाहे वह हिन्दू राजा हो या मुसलमान.अब कुच्छ लोग  दलितों को सिखा रहे है की आर्य ब्राह्मणों ने तुमारा हित नहीं होने दिया है. तुम उसके साथ विद्रोह करो. लड़ो मरो मारो. या दुसरे धर्म में आ जाओ. अभी मै सोहराब जी के ब्लॉग पर पढ़ रहा था.  उसमे लिखा है की बाबासाहेब ने बौध धर्म स्वीकार कर गड़बड़ कर दिया है.  उससे दलितों को साइड इफेक्ट हो गया है..उसकी यही दवा है की वे मुस्लिम बन जाये. येसी बातें हिन्दू जैसे नाम वाले व्यक्ति से कहलाई जाती है.ये लोग पूज्य बाबा साहेब जी को ही फेल करने पर तुले है. किसको दलितों के हित की पड़ी है? अब उद्देश्य तो स्पष्ट है दलित या तो मुस्लिम बन जाय या ब्राह्मणों के साथ लड़कर मरे. उनको जिन्दा रहने का अधिकार कहा है?
मुझे लगता है हम भी जाती और धर्म को लेकर दलितों मुस्लिमों को भड़का रहे है फिर भी हम भाईचारा चाहते है.भाई के चारे से क्या मतलब है यह तो मै नहीं जानता.हाँ एक बात जरुर है कुछ लोग, जो सत्य ही भाईचारा चाहते है. वही हमारी शक्ति है. मुझे यह भी पता है की हम दुसरे को भड़काने, आंदोलित करने की अनुचित स्वतन्त्रता बनाये रखेंगे और फिर भी भाईचारे पर काम करते रहेंगे.जय हिंद जय भारत. 

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