मंगलवार, 14 दिसंबर 2010


यह बात बहुत अछी है की हम सब हिन्दू है.कोई जैन हिन्दू,कोई वैष्णव हिन्दू,कोई मुहमद्दी हिन्दू.अब हम नव युवाओंको मिलजुलकर एक नई मिलीजुली संस्कृति का निर्माण करना होगा जिस में धार्मिक कट्टरता न हो,दुसरे से अपने को श्रेष्ठ समजने की भावना भी न ह...ो और दुसरे का सम्मान.मदत करने का सच्चा आचरण हो.ऐसे भी.अब हम कपड़ों से न हिन्दू मालूम पड़ते है न मुस्लमान.अब हम आदमी ज्यादा आदमी मालूम पड रहे है.कितना अछा होता थोडा उधर की मज्जिद इधर खसक आती और इधर का मंदिर धोड़ा उधर खसक जाता.मंदिर मज्जिद की तरह मालूम पड़ते और मज्जिद मंदिर की तरह.अब हमें उन भूतों से पिंड छोड़ना पडेगा जिन्होंने मंदिर थोड़े,मज्जिद धोड़ी.अब हमें अब्दाली बाबर जैसे भूतों की,भुत कालीन काले इतिहास की आवश्यकता नहीं है.अब हमें महान अकबर एवं शिवाजी जैसे महा पुरुषों की आवश्यकता है जिन्होंने स्वयं धार्मिक होते हुए भी दुसरे के धर्म का सम्मान करना नहीं छोड़ा

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